Friday, February 17, 2012

ek muththi raakh ki

मेरी 
आँखें बंद हैं
पलकें नम हैं
जुबां थकी है
होंठ सुर्ख हैं 
हाथ बंधे हैं
कदम रुके हैं 
सांस थमी है...


और तुम्हारे पास 
एक मुठ्ठी मेरी राख की....


* My...
eyes are shut
lashes are damp
tongue is tired
lips are dried
hands are tied
feet are rested
breath has stopped...


And you hold
A fistful of the dust that was me.






Thursday, February 16, 2012

Sab Mithya Hai

सब मिथ्या यह यादें यहीं की रह जाती हैं;
यह लोग और इनके साथ हमारे झगडे  
यहीं रह जाते हैं
यह कपरे यहीं जल जाते हैं'
यह पैसा सिर्फ यहीं खर्च होता है
यह चीज़ें यहीं धूल खाती रह जाती हैं


फिर क्यूँ इनके पीछे हम भागे चले जाते हैं 
क्यूँ हर इक पल को सुकून से नहीं सजाते हैं
क्यूँ भूल जाते हैं समय के फेर से
हम एक दिन यहाँ से चले जाते हैं
क्यूँ भूल जाते हैं सब यहीं रह जाता है
सब पीछे छूट जाता है
सब हाथ से निकल जाता है
क्यूँ याद नहीं रहता ये
क्यूँ यह व्यथा है?
सब मिथ्या है, सब मिथ्या है, सब मिथ्या है




* It's all in vain - these memories, they stay right here;
these people and our issues with them stay right here 
these clothes, burn right here; 
this money, can only be spent here; 
these possessions, gather dust right here; 


then why do we chase these? 
why don't we decorate each moment with peace? 
why do we forget that due to time's movement we leave this plane one day? 
why do we forget it all stays right here, 
it all gets left behind, 
it all slips out our fingers? 
why do we forget? 
why this agony, this pain? 
It's all in vain, it's all in vain, it's ALL in vain.
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